पुणे . कोरेगांव पार्क में बना आचार्य रजनीश ओशो के प्रेम का मंदिर ‘बाशो’ बिकने के लिए तैयार है। इसके लिए 107 करोड़ रुपये की बोली भी लग चुकी है। लेकिन, ओशो से जुड़े लाखों भक्त इससे बहुत आहत हैं। ओशो आश्रम से लंबे समय तक जुड़े रहे स्वामी चैतन्य कीर्ति ने प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के नाम खुला पत्र लिखकर इसे बचाने की भावनात्मक अपील भी की है। बाशो को बचाने की मुहिम तेज हो गई है। दुनिया भर के ओशो के शिष्यों ने इसे बेचने से बचाने के लिए ऑनलाइन पहल शुरू की है। पूरा मामला मुंबई चैरिटी कमिश्नर के अधीन है। 22 जून को इस पर सुनवाई होनी है। ।
बजाज परिवार ने 107 करोड़ रुपए की बोली लगाई
आचार्य रजनीश ओशो का संदेश है कि जहां आनंद है , वहां प्रेम है और जहां प्रेम है, वहां परमात्मा है। इसलिए उन्होंने बड़ी शिद्दत से कोरेगांव में अलग-अलग प्लाट लेकर 28 एकड़ क्षेत्रफल में प्रेम का मंदिर बनवाया था। जिसका रकबा करीब 9,836 वर्गमीटर है।इसमें से प्लाट संख्या 15 और 16 को बेचने की पूरी तैयारी हो चुकी है। ओआईएफ के मौजूदा ट्रस्टियों ने इसे बेचने की तैयारी की तो बजाज परिवार ने 107 करोड़ रुपए की बोली लगा दी है। लेकिन ओशो प्रेमी नहीं चाहते कि जमीन बेची जाए। ओशो से जुड़े स्वामी चैतन्य कीर्ति ने बताया कि जब शिष्यों को पता चला कि बाशो को बेचा जा रहा है तब ओशो फ्रेंड्स फाउंडेशन के लोग परेशान हो गए। फाउंडेशन के ट्रस्टी योगेश ठक्कर उर्फ स्वामी प्रेंमगीत और स्वामी आनंद उर्फ अनादि रावल ने इसके खिलाफ मुंबई चैरिटी कमिश्नर के यहां हस्तक्षेप याचिका दायर की। उसके बाद बाशो को बचाने के लिए ओशो के शिष्यों की ओर से प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और चैरिटी कमिश्नर को हजारो ईमेल भेजे गए हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया पत्र पीएमओ की तरफ से महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को अग्रसारित किया गया है। पंचशील रियाल्टी के चेयरमैन अतुल चोरडिया ने 90 करोड़, ए टू जेड ऑनलाईन सर्विसेस प्रा.लि. ने 85.5 करोड़ और राजीव बजाज ने 107 करोड़ की बोली लगाई थी। निविदा प्रक्रिया के बाद ओआईएफ ने बजाज से 50 करोड़ रुपए एडवांस भी लिया है।
कोरोना के बहाने शुरू हुआ जमीन बेचने का खेल
ओआईएफ ने चैरिटी आयुक्त को दिए आवेदन क्रमांक 2-20-21 में कहा है कि कोरोना संकट के दौरान अप्रैल 2020 से लेकर सितंबर 2020 तक 3 करोड़ 65 लाख रुपए खर्च हुआ। ट्रस्ट को और पैसे की जरूरत है, इसलिए यह प्लाट बेचना है। आश्रम का प्लाट बिकने की जानकारी मिलने पर ओशो के शिष्य योगेश ठक्कर-स्वामी प्रेमगीत और किशोर रावल-स्वामी आनंद ने ओआईएफ के आवेदन को चुनौती देते हुए हस्तक्षेप याचिका दायर की है।वहीं, ओआईएफ की ट्रस्टी मां अमृत साधाना का कहना है कि यह हमारी अपनी जगह है और अपनी समझ के अनुसार इसे बेचने का फैसला किया है। कोरोना संकट के कारण आश्रम का मेंटिनेंस और उसके अंदर रहने वाले 15 लोगों का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। ओशो आश्रम एक साल से बंद है। स्वामी चैतन्य कीर्ति कहते हैं कि मौजूदा समय में जब 15 लोग ही आश्रम में रह रहे हैं तो इतना खर्चा कैसे हो गया। इससे पता चलता है कि ट्रस्टियों की नीयत ठीक नहीं है। हमें शक है कि ओआईएफ बाशो की जमीन को बेचकर पैसा विदेश डायवर्ट करना चाहता है। हमें उम्मीद है कि मुंबई के चैरिटी कमिश्नर हजारो ओशो प्रेमियों की इच्छा का सम्मान करेंगे और बाशो की संपत्ति की बिक्री को रोकेंगे।
ये है मेडिटेशन रिसार्ट बाशो
इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसार्ट जिसे बाशो कहा जाता है वहां प्रत्येक प्लाट करीब डेढ़ एकड़ का है। जहां स्वीमिंग पूल, मेडिटेशन सेंटर आदि बनाए गए हैं। इसमें से मात्र 3 एकड़ जमीन बेची जा रही है।
ओशो की विरासत को खत्म करने का षड़यंत्र
ओशो फ्रेंड्स फाउंडेशन के स्वामी प्रेमगीत कहते हैं कि ओआईएफ ने चोरी-छुपे बाशो की जमीन बेचने की तैयारी की थी लेकिन अचानक हमें इसकी भनक लग गई। उनका आरोप है कि ओआईएफ के ट्रस्टी एक विदेशी के हाथ की कठपुतली बनकर नाच रहे हैं। स्विटजरलैंड और अमेरिका में बैठकर वह जैसा चाहें वैसे ट्रस्टियों को नचा रहा हैं। यह ओशो की विरासत को खत्म करने का षडयंत्र है। जब कोरोना संकट के दौरान पूरा देश लॉकडाऊन था, लोग अपने घर में बंद थे तो पौने चार करोड़ रुपए कहां खर्च हुए। आश्रम के खर्च के बारे में कभी ओशो सन्यासियों को नहीं बताया गया। ओशो के सन्यासियों में इतनी क्षमता है कि यदि आश्रम को जरूरत है तो वे पैसे देने के लिए तैयार हैं।इसके अलावा ओशो की बौद्धिक संपदा से बहुत बड़ी आय होती है तो देश से बाहर जा चुका है। आठ साल पहले तक सिर्फ ओशो की बौद्धिक संपदा से ही 25 से 30 करोड़ की आय होती थी। यदि उसी पैसे का इस्तेमाल हो तो ओआईएफ ओशो आश्रम की जमीन बेचने की बजाय और जमीन खरीद सकता है।